सेठो के सेठ कहे जाते हे श्री सांवलिया सेठ
आज के कलिकाल में मोक्ष प्राप्ति के लिए के ईश्वर की भक्ति ही एक सरल मार्ग हे और आत्मा को मोक्ष भगवत कृपा से ही प्राप्त हो सकता हे| भगवान की कृपा उन्ही पर होती हे जो भगवान को भक्ति कर प्राप्त कर लेता हे और यह तभी संभव होता हे जब मनुष्य के कर्म अच्छे किये हो| आज के समय में भगवान श्री कृष्णा की भक्ति करना और उन्हे रिझाना आसन हे और भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तो की भक्ति पर भाव पूर्वक रीझ भी जाते हे जिसके कई उदहारण हे जिसमे मीरा बाई, नरसिंह मेहता, सुदामा जी आदि | आज इस कालिकाल में भी भगवान श्री कृष्ण अपने विभिन्न रूपों व नामो से भक्तो की सहयता करते आ रहे हे जिसमे राजस्थान के चित्तोड़गड जिले के मंडफीया में स्थित भगवान श्री कृष्ण, सांवरिया सेठ के नाम से विराजित है जो भक्तो की हर मुराद पूरी करते हे|
भगवान् श्री सांवलिया सेठ की महिमा व मंदिर काफी पुराणिक और विश्व प्रसिद्ध माना जाता है| पुराणों के अनुसार बताया जाता हे की मीरा बाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थी और जिस गिरधर गोपाल कि मूर्ति की वो पूजा करती थी वही यह सांवलिया सेठ रहे है |और मीरा बाई इन्ही मूर्ति के साथ एक दयाराम नामक संत की जमात थी जिसमे मीरा बाई संतो के साथ इन मूर्ति को लेकर भ्रमण करती थी|औरंगजेब की मुग़ल सेना भारत में मंदिरों को तोड़ रही थी उस समय मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुग़ल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा। तब संत दयाराम जी ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर पधरा (छिपा)दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम जी का देवलोकगमन हो गया। कालान्तर में सन 1840 में मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां ज़मीन में दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गई तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं। सभी मूर्तियां बहुत ही मनोहारी थी। देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फ़ैल गई और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पंहुचने लगे। फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाई गई, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंझली मूर्ति को वहीं खुदाई की जगह स्थापित किया गया इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है। सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाई गई जिसे उन्होंने अपने घर के परिण्डे में स्थापित करके पूजा आरंभ कर दी। चौथी मूर्ति निकालते समय खण्डित हो गई जिसे वापस उसी जगह पधरा दिया गया। कालांतर में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए। तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैली। आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं। और अपनी मनोकामनाए को पूर्ण करते हे और श्री सांवलिया सेठ भी उनकी भक्ति अनुरूप मनवांछित फल प्रदान करते हे|
इसलिए कहा जाता हे सेठ : सांवलिया सेठ के नाम का सबसे पहला जिक्र हमें सुदामा प्रसंग के समय मिलता है। सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका जाते हैं और वहां उनके महल में छप्पन पकवान जब उनके सामने परोसे जाते हैं तो वे यह कहकर श्रीकृष्ण से भोजन करने से इनकार कर देता है कि उनकी पत्नी वसुंधरा और मेरे बच्चें भूखे होंगे। यह सुनकर उसी वक्त श्रीकृष्ण दूसरा रूप धारण करके सुदामा के गांव पहुंच जाते हैं वहां जाकर वे सांवले शाह सेठ बन जाते हैं। और तब से श्री कृष्ण अपने एक नये सांवलिया सेठ के नाम से भी प्रसिध्द हुवे|
मायरे के लिए देते हे निमंत्रण : पुराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण के अनन्य भक्त नरसिंह मेहता की पुत्री नानी बाई का जब मायरा भरना था तब नरसिंह जी ने इन्ही सांवलिया सेठ का स्मरण किया था और श्री कृष्ण में स्वयं आकर नानी बाई का भव्य मायारा किया था तब से आज तक लोग सांवलिया सेठ को अपने यहाँ मायारा भरने के दोरान इन्हें निमत्रण देने भी आते हे और एसी मान्यता भी हे की सांवलिया सेठ उन भक्तो के साथ जाते भी है
बिजनेस पार्टनर : व्यापार जगत में श्री सांवलिया सेठ जी की ख्याति इतनी है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर तक बनाते हैं। जिसमे वे सांवलिया जी को 2 से 20 प्रतिशत तक का हिस्सेदारी समर्पित करते हे| लोगों की श्री सांवलिया जी को लेकर ऐसी मान्यता है जितना वे यहां चढ़ाएंगे सांवलिया सेठ उनके खजाने को उतना ज्यादा भरेंगे। ऐसे में कई लोगों ने अपने खेती से लेकर व्यापार व तनख्वाह में सांवलिया सेठ का हिस्सा रखा हुआ है। ऐसे लोग हर माह मंदिर आते हैं और उनके हिस्से की राशि चढ़ा देते हैं।
कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी को खुलता हे भंडारा : श्री सांवलिया सेठ के दरबार में प्रतिमाह कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी को दान पेंटियो का भंडारा खोला जाता हे जिसमे दो दिनों तक चढ़ावे की राशी की गणना की जाती हे जिसमे करोडो रूपये की दान राशि प्राप्त होती हे|इस राशी की गणना मंदिर प्रशासक, कर्मचारी और कुछ श्रद्धालु की उपस्थित्यी में की जाती हे इसी दान की राशी से ही मंदिर की व्यवस्थाओ का सञ्चालन किया जाता हे|