नासिक त्रिम्बकेश्वर धाम में हुई शिव महापुराण कथा

श्री धाकड़ समाज सत्संग समिति ने कराया आयोजन, सेकड़ो श्रधालुओ ने किया कथा का रस पान

नासिक त्रिम्बकेश्वर धाम में हुई शिव महापुराण कथा

भगवान शिव के पवित्र माह श्रावण के चलते एक और जहा भक्तो का मंदिरों में ताता लगा हुवा है वही इस बार श्रावण मास में अधिक् मास के आने से इस श्रावण की महिमा और भी बढ़ गयी है| जिसमे लोग इस अधिकमास में भगवान शिव के दर्शन करने दूर दराज से आ और जा रहे है| इसी क्रम में इस माह में शिव के पवित्र ज्योतिर्लिंग पर शिव महापुराणकथाओ का और अधिक महत्त्व बढ़ जता हे जिसमे श्रद्धालु १२ ज्योतिर्लिंग और तीर्थ स्थानों में जाकर शिव महिमा को सुन अपने जीवन को धन्य कर रहे है|
अखिल भारतीय धाकड़ महासभा संघ दानी गेट उज्जैन के श्री धाकड़ समाज सत्संग समिति दानी गेट के तत्वधान में श्रावण मास में अधिकमास के पवन पर्व पर भगवान् शिव के धाम त्रिम्ब्केश्वर ज्योतिर्लिंग में श्री शिव महापुराण कथा का आयोजन किया गया जिसमे कथा व्यास श्री १०८ श्री संत श्याम दास जी महाराज के मुखारविंद ९ दिवसिय श्री शिवमहापुराण कथा सुनी जिसमे उज्जैन जिले सहित राजस्थान महारास्ट्र व गुजरात के श्रधालुओ ने कथा का रसास्वादन किया|

शिव महापुराण के प्रथम दिन कथा व्यास संत श्याम दास जी ने त्र्यंबकेश्वर महादेव की महिमा के बारे में बताया| उन्होंने कहा की  त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ही विराजित हैं| यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। प्राचीन काल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहां अवतरित करने का वरदान माँगा। आगे व्यास जी ने यहां की कथा सुनाते हुवे कहा की एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्नियां किसी बात को लेकर महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। ऐसे में महर्षि गौतम का अपमान करने के लिए ब्राह्मणों ने भगवान गणेश की कठोर तपस्या की। ब्राह्मणों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। इस पर ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम को तपोवन से बाहर निकालने के लिए कहा। भगवान गणेश ने ब्राह्मणों को ऐसा ना करने के लिए समझाया, लेकिन वह नहीं माने। आखिर में भगवान गणेश को उनकी बात माननी पड़ी। विवश होकर भगवान गणेश ने एक दुर्बल गाय का रूप धारण किया और महर्षि गौतम के खेत में फसल खाने लगे। यह देख महर्षि गौतम ने जैसे ही गाय को भगाने के लिए एक घास का तिनका फेका जिससे वह गाय वहीं मर गई। यह देख सारे ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम पर गोहत्या का आरोप लगाते हुए उन्हें वहां से जाने के लिए कह दिया। इस पर महर्षि गौतम ने उनसे प्रायश्चित करने का उपाय पूछा। ब्राह्मणों ने महर्षि गौतम से कहा कि तुम तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा, एक महीने तक व्रत और ब्रह्मगिरि की सौ परिक्रमा करो तो ही तुम्हारी शुद्धि होगी। यदि यह ना कर सको तो गंगा जी को यहां लेकर आओ और उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करो। इसके बाद वापस गंगा में स्नान करके फिर सौ घड़ों से पार्थिव शिवलिंग का जलाभिषेक करो। ब्राह्मणों के बताए अनुसार महर्षि गौतम ने कठोर तपस्या की।महर्षि गौतम की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देते हुए ब्राह्मणों द्वार किए गए छल के बारे में बताया और उन्हें दंड देने की बात कही। इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि इनके छल के कारण ही मुझे आपके दर्शन हुए हैं। आप इन्हें माफ़ कर दे और हमेशा के लिए यहां विराजमान हो जाए। इसके बाद भगवान शिव वहीँ गौतमी-तट पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। इसके अलावा महर्षि गौतम द्वारा लाई गई माता गंगा भी पास में ही गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं| इस प्रकार इस पवित्र स्थल पर शिव महापुराण की कथा सुनना अनंत फल दायक है|

कथा व्यास संत श्री ने आगे कथा में भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले पंचाक्षर मंत्र के बारे में बताया जो सृष्टि  का पहला मंत्र माना  जाता है| संत ने कहा की शिव महापुराण के अनुसार बताया जाता हे की जब भगवान शिव अग्नि के स्तम्भ के रूप प्रकट हुवे थे तब उनके पञ्च मुख थे जो पांचो तत्वों पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि, वायु के रूप थे और सर्वप्रथम जिस शब्द की उत्पत्ति हुई थी वह शब्द "ॐ" था| बाकि पञ्च शब्द "नमः शिवाय" की उत्पत्ति उनके पांच मुखों से हुई है जिसको सृष्टि का सबसे पहला मंत्र मन जाता हे और यही महामंत्र है| भगवान विष्णु के मुख से उनके आराध्य भगवान शिव शंकर का मंत्र बोले जाने के कारण यह महादेव का प्रिय मंत्र बन गया। भगवान विष्णु  के बाद इस मंत्र का उच्चारण ब्रह्म देव ने किया, फिर देवताओं, सप्त ऋषियों, ऋषि-मुनियों, गन्धर्वों, यशो और शिव भक्तों एवं मनुष्यों द्वारा इस मंत्र का जाप शुरू हुआ। चूंकि इस मंत्र का पहली बार उच्चारण भगवान विष्णु द्वारा हुआ था इसी कारण से माना जाता है कि भगवान शिव के इस मंत्र में भगवान विष्णु की शक्तियांभी सम्मिलित हैं। इसलिए इस मंत्र का जाप करने से सभी मनोरथ और सिद्धियां प्राप्त होती हे जो मोक्ष और भोग दोनों को देता है |वही इस मन्त्र के जाप करने से सभी प्रकार की व्याधियों एवं बाधाएं दूर हो जाती हे यहाँ तक की काल भी इस मंत्र को जपने वालो के पास नहीं आता है | 

आगे कथा में व्यास जी ने भगवान शिव के विभिन्न प्रसंग की कथाएं और उनके पूजन की विधाओ के बारे में बताया| उन्होंने कहा की इस शिवपुराण कथा में भगवान की शिव भक्ति और शिव महिमा का वर्णन किया गया है| शिव त्याग,तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की प्रतिमूर्ति है| भगवान् शिव बहुत ही सरल रूप से प्रसन्न होने वाले महादेव हे, जो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, धतूरा आदि मात्र चढ़ाने से प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान कर देते है|
९ दिवसीय श्री महापुराण कथा में संत श्री श्यामदास जी महाराज द्वारा शिव पार्वती विवाह, रामचरितमानस के प्रसंग, दैत्यों और असुरों का संहार कर धर्म ध्वजा फहराने की कथाये, गणेश जन्म, कार्तिक जन्म और १२ ज्योतिर्लिंग की स्थापनाओ की कथा का श्रवण कराया| जिसका लाभ हजारो श्रद्धालुओं ने कथा पंडाल व ऑनलाइन टीवी चैनल के माध्यम से घर बैठे लिया गया