ऋषि ऋण से मुक्त करता है ऋषि पंचमी का व्रत

ऋषि ऋण से मुक्त करता है ऋषि पंचमी का व्रत

हिन्दू सनातन धर्म में अनजाने में हुई कई प्रकार की गलतियों को क्षमा करने व उन गलतियों के प्रायश्चित  के लिए कई युक्ति और हल मिलते हे जिसके कारन हुई गलतियों को भगवान माफ़ कर भगवत कृपा प्राप्त होती है| ऋषि पंचमी व्रत भी हिन्दू धर्म में दोषों से मुक्त होने के लिए किया जाने वाला व्रत हैं। इस व्रत में सप्त-ऋषियों की पूजा-अर्चना की जाती हैं। हिन्दू धर्म में माहवारी के समय, स्त्रियों द्वारा बहुत से नियमों का पालन किया जाता हैं। अगर अज्ञानता वश इस समय में कोई चूक हो जाती हैं, तो महिलाओं को दोष मुक्त करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत रखा जाता है। यह पर्व गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। ऋषि पंचमी व्रत सामान्यतः अगस्त अथवा सितम्बर माह में आता है। मान्यता के अनुसार यह दिन विशेष रूप से भारत के ऋषियों का सम्मान के लिए समर्पित है। ऋषि पंचमी के दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने का बड़ा महत्व है। साथ ही ऋषि पंचमी के दिन व्रत करने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों से भी माफी मिल जाती है। ऋषि पंचमी के दिन माताएँ आमतौर पर व्रत रखती हैं। जिस किसी  महिला ने  मासिक धर्म के दिनों में शास्त्र-नियमों का पालन नहीं किया हो या अनजाने में ऋषि का दर्शन कर लिया हो या इन दिनों  में उनके आगे चली गयी हो तो उस गलती के कारण जो दोष लगता है, उस दोष का निवारण करने हेतु वह व्रत रखा जाता है।

पौराणिक कथा

सतयुग में वेद-वेदांग जानने वाला सुमित्र नाम का ब्राह्मण अपनी स्त्री जयश्री के साथ रहता था। वे खेती करके जीवन-निर्वाह करते थे। उनके पुत्र का नाम सुमति था,जो पूर्ण पंडित और अतिथि-सत्कार करने वाला था। समय आने पर संयोगवश दोनों की मृत्यु एक ही साथ हुई। जयश्री को कुतिया का जन्म मिला और उसका पति सुमित्र बैल बना। भाग्यवश दोनों अपने पुत्र सुमति के घर ही रहने लगे। एक बार सुमति ने अपने माता-पिता का श्राद्ध किया। उसकी स्त्री ने ब्राह्मण भोजन के लिए खीर पकाई, जिसे अनजान में एक सांप ने जूठा कर दिया। कुतिया इस घटना को देख रही थी। उसने यह सोच कर की खीर खाने वाले ब्राह्मण मर जायेंगे, स्वयं खीर को छू लिया। इस पर क्रोध में आकर सुमति की स्त्री ने कुतिया को खूब पीटा। उसने फिर सब बर्तनों को स्वच्छ करके दुबारा खीर बनाई और ब्राह्मणों को भोजन कराया और उसका जूठन जमीन में गाढ़ दिया। इस कारण उस दिन कुतिया भूखी रह गयी। जब आधी रात का समय हुआ तो कुतिया बैल के पास आई और सारा वृतान्त सुनाया। बैल ने दुःखी होकर कहा- ‘आज सुमति ने मुँह बाँधकर मुझे हल में जोता था और घास तक चरने नहीं दिया। इससे मुझे भी बड़ा कष्ट हो रहा है।’ सुमति दोनों की बातें सुन रहा था और उसे मालूम पड़ गया कि कुतिया और बैल हमारे माता-पिता हैं। उसने दोनों को पेट भर भोजन कराया और ऋषियों के पास जाकर माता-पिता के पशु योनि में जन्म लेने का कारण और उनके कल्याण का उपाय पूछा। ऋषियों ने उनके उद्धार के लिए ऋषि पंचमी का व्रत करने को कहा। ऋषियों की आज्ञा के अनुसार सुमति ने विधिपूर्वक श्रद्धा के साथ ऋषि पंचमी का व्रत किया, जिसके फल से उसके माता-पिता पशु योनि से मुक्त हो गए।

ऋषि पंचमी व्रत विधि 
*ऋषि पंचमी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाए। 
*घर और मंदिर की अच्छे से सफाई करें। 
*पूजन की सामग्री जैसे धूप, दीप, फल, फूल, घी, पंचामृत आदि एकत्रित करके एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। 
*चौकी पर सप्तऋषि की तस्वीर रखें।
*इस दिन अपने गुरु की तस्वीर भी स्थापित कर सकते हैं। 
*फल-फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करते हुए अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें। 
*आरती करें और प्रसाद सभी में वितरित करें।